प्रासंगिक - बनारस का अद्वैत(हिंदी)

 बनारस का अद्वैत


  बनारस घराना

बनारस (Banaras)शहर आध्यात्मिक राजधानी ही नहीं बल्कि भारतीय कला तथा संस्कृति का एक अहम् केंद्र रहा है. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना, ज्ञात जानकारी के अनुसार संभवत सबसे प्राचीन घराना है. घराने के होनहार चिराग उसे रोशन करते हैं. कई दिग्गजों ने बनारस घराने को आलोकित किया है. आज इस का जिक्र इसलिए आवश्यक हो गया क्योंकि इसी घराने के बड़े ही राजस सपूत पंडित राजन मिश्रा ने,(Pandit Rajan Mishra) धरातल पर सजी महफिल में अचानक भैरवी(Bhairavi) के सुर आलापें.

शास्त्रीय, उपशास्त्रीय संगीत की गंगधार में पंडित राजन - साजन मिश्रा, हंसों का जोड़ा था. रविवार 25 अप्रैल, 2021 को पंडित राजन मिश्रा के रूप में एक हंस उड गया और ये जोडा हमेशा के लिये बिछड गया. संगीत की दूनिया मे गजब ढा गया. चाहने वालों पर जुलम सा कर गया.

सहगान अद्वैत

हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में जुगलबंदी की परंपरा रही हैं. जिसमे दो विभिन्न गायक, या गायक और वादक अपनी अपनी कला पेश करते हैं, या एक दुसरे का विचार आगे वाढते हैं. लेकिन इस विधा में, मस्तिष्क के किसी कोने में, एक दूसरे पर हावी होने की, हलकीसी ही सही, तमन्ना मौजूद होती हैं. पंडित राजन साजन मिश्रा पचास साल एक साथ गाते रहे लेकिन रुढार्थ से वह कभी जुगलबंदी कर रहे हैं ऐसे प्रतीत नहीं हुआ.  उनकी प्रस्तुति में जुगलबंदी के भाव का अभाव हमेशा प्रकर्षता से महसूस होता रहा. उनकी प्रस्तुति को जुगलबंदी की नही, सहगान की बैठक थी, जो उन्हें गुरुजनों से संस्कार के रूप में मिली थी. 

गोवा(Goa) में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह(IFFI) के दरम्यान इस पंडित द्वयी से प्रत्यक्ष रूबरू होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था. पंडित साजन(Sajan Mishra) जी को यह कहते सूना है कि, संगीत, स्पर्धा का नहीं बल्कि आनंद का विषय है, जिसमें एक दूसरे को सुनना, समादर करने से आनंद की पराकाष्ठा होती हैं. हर मनुष्य के अंदर जो परमात्मा है,उसे रिझाने के लिये संगीत का प्रयोजन हैं यह भावना से कलाविष्कार होता रहा. रसीला पान और सुरीला गान यह तो बनारस की पहचान रही है. इस घराने के शागीर्द पंडित राजन मिश्रा जी ने किसी साक्षात्कार में कहा था कि बनारस में संगीत को सुनने की नहीं पीने की परंपरा रही है. उनका कहना था की धृपद धमार से लेकर ख्याल, चैती, टप्पा, ठुमरी, कजरी तक, सभी शैलियां जिस में समावेशित हैं ऐसा बनारस यह इकलौता घराना हैं. धृपद की गंभीरता,मींड,गमक के साथ साथ ठुमरी की नजाकत का भी एहसास कराना, अनुभव देना, यह बनारस घराने की खासियत है. 

सुरीला माहोल

दादाजी पंडित बडे रामदासजी के  गंडाबद्ध शागीर्द राजन साजन जी को संगीत की तालीम पिता पंडित हनुमान प्रसाद मिश्रा तथा चाचा गोपाल मिश्रा से प्राप्त हुई. बनारस का कबीर चौरा मोहल्ला पंडित राजन साजन जी की जन्मस्थली हैं. अंग्रेजी में कहावत हैं, 'Born with a silver spoon in one's mouth' इसी तर्ज पर यह बंधु द्वय सूर, ताल, नाद को कानों में भरकर ही जन्मे और बड़े हुए. पंडित किशन महाराज, पंडित सामता प्रसाद, सितारा देवी जी, गिरिजा देवी जी, गोपी किशन जी जैसे महान कलाकारों का वास्तव्य भी इस कबीर चौरा क्षेत्र(कबीर Chaura) में ही रहा हैं. देश के कला संस्कृति के पद्म पुरस्कार के एक दर्जन से ज्यादा धनी इसी इलाके से होने से आगे चलकर इस को पद्म(Padma) गली के रूप में जाना गया. स्वाभाविक रूप से  घर पड़ोस का वातावरण सूर, ताल, लय और नाद से भरा था. परिसर के कबीर मंदिर में होने वाले भजन, आस पडोस में चल रही संगीत साधना बचपन में इन के लिये प्रेरणा का स्रोत बनी. हालांकि उनके गाने पर गुरु पिता हनुमान प्रसाद जी का प्रभाव रहा. राजन जी बताते थे की पिताजी उन्हे अक्सर एक साथ आठ घंटे रियाज(Riyaz) करने नहीं कहते बल्कि 2 घंटे के तीन चार सत्र में साधना के वे पक्षधर थे.

पंडित राजन साजन जी का यह सौभाग्य रहा की उन्हें कभी घराने की संकीर्णता में  बांधा नहीं गया. पंडित राजन जी बताते थे कि उनके गुरु पिताश्री पंडित हनुमान प्रसाद जी का यह मानना था की संगीत की दुनिया यह परमेश्वर की  पुष्पवाटिका हैं. वो कहते थे, "यहाँ जितना गुलाब का महत्व है उतना ही जुई, चमेली का भी है. जो भी अच्छा है उस का स्वीकार करते चलो और बुराई को साफ नजर अंदाज करो."  यही सूत्र को राजन साजन जी ने मंत्र मानकर अपनी सूर साधना आगे बढाई. पंडित राजन साजन मिश्रा जी के मौसिकी का किसी ने बड़ा सटीक वर्णन किया है, लिखते हैं

"उनका संगीत आपको बनारस की मूर्त धरती से लेकर रागों की अमूर्त भव्यता तक ले जाता है।"

 अंतिम अभिलाषाा

पंडित राजन जी बताते हैं कि तानसेन न सही कानसेन बनने के लिये बंद आंखें और खुला दिल यही कारगर सूत्र हैं. करिअर की शुरुआती दौर में बहुत सी भौतिक अभिलाषाएं थी लेकीन अब बस उस पल का इंतजार होता है की कब अपने गाने से अपनी ही आंखों से अंसुवन की धारा बहे. श्रोताओं को भगवान से यह प्रार्थना करने की वह गुजारिश करते की जब तक शरीर धारण किये हुए हैं तब तक गाते रहें और जब गाना बंद हो तो शरीर भी ना रहे. 


पता नहीं की, पंडित राजन जी के लिये हम श्रोताओं की प्रार्थना को समझने में कुछ गडबडी हुई या फिर खुद उन्होंने ही मैफिल को विराम देकर

"धन्य भाग सेवा का अवसर पाया

चरण कमल की धूल बना में

मोक्ष द्वार तक आया" 

यह भजन उपरवाले को उसके दरबार में सुनाने का मन बना लिया था. आधे शतक तक बना रहा यह बनारस का अद्वैत पंडित राजन जी के आधे में ही निकल जाने से भंग हुआ. मिश्रा परिवार शोक व्याकुल है.


स्वयं पंडित साजन जी ने  एक सदमे से गुजरते रहते हुए भी एक व्हॉइस मेसेज भेजकर अपनी भावनाएं यहाँ साझा की... "हमारे गुरु स्वरूप अग्रज पंडित राजन जी के रूप में हमने जरूर एक हिरा खो दिया है. लेकिन अपनी आवाज, सूर के माध्यम से इस हीरे की चमक  आसमान मे जब तक सूरज रहेगा तब तक हमारे बीच बरकरार रहेगी. मुझे तो अब भी यही अहसास है कि राजन जी कहीं गए नहीं है बल्कि मेरे भीतर ही है, हमारे पुरे परिवार के साथ है. पंडित राजन जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए ईश्वर से यह प्रार्थना है कि बनारस घराने की अनमोल धरोहर को आगे बढ़ाने की शक्ति, बडे भाई की परछाई बनकर साथ देने वाले पंडित साजन जी को प्रदान करें.


नितीन सप्रे

nitinnsapre@gmail.com

8851440881





टिप्पण्या

  1. बहुत ही सुन्दर आलेख है। मुझे पूरा विश्वास है कि राजन जी द्वारा शुरू की गई स्वर यात्रा रुकेगी नही। उन्होंने अपने जीते जी अपने छोटे भाई पद्मभूषण पंडित साजन मिश्र, दोनों पुत्रों रीतेश और रजनीश मिश्र, भतीजे स्वरांश तथा 50 के लगभग ऐसे सुयोग्य शिष्यों को तैयार कर दिया है जो सफलता पूर्वक उनकी परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। साजन जी जब भी गायेंगे उनकी आत्मा से राजन जी की आवाज भी आयेगी। लेखक महोदय को ढेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं। पंडित विजय शंकर मिश्र दिल्ली से

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  2. नितीनजी,
    शब्द आणि स्वर एक स्वर तर दुसरा शब्द स्वरात मिसणारा।दोघेही थोर।
    तुम्ही राजनजींचं चरित्र चित्रण उत्तम रीतीने आमच्या पुढे ठेवलय। रेडिओ टीव्ही वर त्यांचं गाणं ऐकलं आहे .

    उत्तर द्याहटवा

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