स्मृतिबनातून - 'हरीवरासनं' - शरणं अय्यप्पा
शरणं अय्यप्पा स्वामी शरणं अय्यप्पा
बस अभी कुछ घंटे भर पहले सूरज ने विदा ली थी। रात के करीब आठ बजे थे। आम तौर पर इस समय ठाणे शहर की सड़कें, दुकानें अपने पूरे शबाब पर होती हैं । लेकिन कोरोनाने हालात पस्त कर दिये हैं इस कारण भीड़ हमेशा जैसे नहीं थी। हम पत्नी के साथ शाम की सैर से घर लौट ही रहे थे, तब रास्ते में अचानक हवा के हलके झोंके के साथ कानों पर बेहद भावपूर्ण धून आ टकराई। अनजाने में उन जादुई सूरोंन का हमने पीछा करना शुरू किया और कुछ पलों में अयप्पा मंदिर पहुंच गए।
पारंपरिक संरचना वाला छोटा सा विलोभनीय मंदिर। मन में गांव की याद हल्की-सी जाग्रत हो गई। अगले दस-पंद्रह मिनट तक कान, आंख और मन एक ही समय त्रिगुणात्मक आनंद को प्राप्त कर गए। मंदिर के गर्भगृह में केवल तेल के दीयों की रोशनी ही मौजूद थी। अय्यप्पा स्वामी(Ayyapa Swami) के सम्मुख और इर्द गिर्द टीम टिमाते दीपकों पर नन्ही नन्ही दीपशिखाएं नर्तन रत थी। गर्भगृह सुनहरे पवित्र प्रकाश से आलोकित हुआ था। मंदिर परिसर में बीचो बीच दीपस्तंभ पर भी उन्ही दीपशिखाओं का दीप्तिमान आविष्कार परिसर की शुचिता बढ़ा रहा था। धीमा ताल, मंद लय और अद्वितीय स्वर के साथ 'हरीवरासनं' कर्ण माधुर्य के आनंद की अनुभूति दे रहा था। महसूस हुआ कि अंतःकरण में उठ रही समुद्र की विकराल लहरें किसी झील की संथगती से लहराती लहरों में तब्दील हो चुकी थी। पूरा वातावरण इतना विलक्षण और अद्भुत था कि वह सदा के लिए हृदय पर अंकित हो गया।
कर्नाटक संगीत के मध्यमावती राग में, संगीतकार जी. देवराजन ने एक बहुत ही मधुर अष्ट श्लोकी, एक प्रकार का शरण मंत्र, 'हरीवरासनं' निबद्ध किया है। चेन्नई के रहने वाले कंबनकुडी कुलथुर अय्यर की इस रचना (इस संबंध में कुछ प्रवाद हैं) अय्यप्पा के भक्त पार्श्व गायक के.जे. येसुदास(Yesudas) ने अपने भाव विभोर अनूठी स्वर में, गले की भारी फिरत का उपयोग करते हुए, सच्ची लगन से स्वामी को समर्पित कि है। इसे सुनाने के पश्चात ऐसा प्रतीत हुआ की मानो भगवान ने संभवत उसे, खास अपने आनंद के लिये मानव से निर्मित करवाया हो। सर्वदूर के स्वामी अय्यपा मंदिरों में, रात मंदिर बंद होने से पहले मानो भक्तजन भगवान को लोरी सुनाते हो। लेकिन वास्तव में यह भक्तों का स्वामी अयप्पा के प्रति आत्मार्पण हैं।
किसी समीक्षक ने मध्यमावती राग(Madhyamawati राग) का, विरोधाभासी शब्द योजना के साथ बडा सटीक वर्णन किया है। इस रचना को सुनने के बाद ऐसी घनघोर शांती का अनुभव होता है की मानो शांति का बवंडर आ गया हो। इस राग पर आधारित 'हरीवरासनं' सुनने से भितरी भावनाओं का कोलाहल शांत होता है। लेकीन यह शांती क्रियाशील हैं। अपने मन को सशक्त बनाने का काम करती हैं, ना की 'यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है' (Ye duniya agar mil bhi jaye to kya hai)जैसे उदासी के रंग में पोतती हैं। ये हम मनुष्य को निष्क्रिय, निराश कतई नही बनाती है।
ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विमोचनानंद ने 1955 में, सबरीमाला(Sabarimala) के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में पहली बार इस अष्टकम का पाठ किया था। मुख्य पुजारी और अन्य पुजारी अयप्पा स्वामी के दोनों ओर खड़े होकर यह प्रार्थना करते हैं। जैसे ही प्रार्थना पूरी होती है, मंदिर के गर्भगृह में केवल मुख्य पुजारी होते हैं और सिवाय नाममात्र के, एक-एक करके अन्य दीपों की लव को निस्तेज किया जाता है, तथा देवालय के द्वार बन्द किये जाते हैं। वर्तमान में, येसुदास की आवाज में ''हरीवरासनं'' गाया जाता है।
श्रीहरिहरात्मजाष्टकम्
हरिवरासनं विश्वमोहनम्
हरिदधीश्वरमाराध्यपादुकम् ।
अरिविमर्दनं नित्यनर्तनम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ १ ॥
जो परम सिंहासन पर विराजमान हैं, जो समुचे विश्वको मंत्रमुग्ध करता हो, साक्षात सूर्य देवता जिनके पवित्र चरण (हरिदधीश्वर - सूर्य) पूजती हो, जो सत्कर्म के शत्रू का मर्दन करता हो, जो सदैव असाधारण नर्तन करता हो, (शिव और मोहिनी पुत्र, मोहिनी यह भगवान विष्णू का अवतार माना जाता हैं. हरि आणि हारा का पुत्र!) ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
शरणकीर्तनं भक्तमानसम्
भरणलोलुपं नर्तनालसम् ।
अरुणभासुरं भूतनायकम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ २ ॥
शरण गोषम सुनकर जिस का मन प्रफुल्लित होता है, जो चराचर का स्वामी है, जिसे नृत्य अत्यधिक प्रिय है,.भास्कर जैसा जिस का प्रभामंडल तेजोमयी हैं, जो सर्व जीवसृष्टी का अधिपति है ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
प्रणयसत्यकं प्राणनायकम्
प्रणतकल्पकं सुप्रभाञ्चितम् ।
प्रणवमन्दिरं कीर्तनप्रियम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ३ ॥
जिसकी आत्मा सत्य है, जो सभी आत्माओं को प्रिय है, जो ब्रम्हांड का निर्माणकर्ता हो, जो तेजांकित प्रभामंडल धारक हैं, जो ॐ का निवास स्थान होने के साथ संगीत प्रेमी हैं ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
तुरगवाहनं सुन्दराननम्
वरगदायुधं वेदवर्णितम् ।
गुरुकृपाकरं कीर्तनप्रियम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ४ ॥
जो अश्वारूढ और सुमुख है, गदाधारी है, जिस का वर्णन वेदों ने किया है, जो सद्गुरु जैसा कृपासिंधु है, जिसे संगीत प्रिय है ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण मे आया हूँ.
त्रिभुवनार्चितं देवतात्मकम्
त्रिनयनप्रभुं दिव्यदेशिकम् ।
त्रिदशपूजितं चिन्तितप्रदम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ५ ॥
सारे त्रिभुवन में जिस का पूजन होत है, जो दैवी अस्तित्व का आत्मा हैं, भगवान भी जिस की उपासना करते हैं, ऐसे जो त्रिनेत्री भगवान है, सर्व कामनाओं की पूर्तता करनेवाला, ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
भवभयापहं भावुकावकम्
भुवनमोहनं भूतिभूषणम् ।
धवलवाहनं दिव्यवारणम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ६ ॥
जो भवताप हरण करता है, जनन मरण के भय को नष्ट करता हो, जो पालनकर्ता है, सारे विश्व को जो मोहित करता हो, जो भस्मालंकारीत है, श्वेत गज जिस का दिव्य वाहन हैं, ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
कलमृदुस्मितं सुन्दराननम्
कलभकोमलं गात्रमोहनम् ।
कलभकेसरीमाजिवाहनम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ७ ॥
आशीर्वचन देते समय जिस के सुमुख पर कोमल मंद स्मित झलकता हो, जिस के दिव्य दर्शन से धन्यता को प्राप्त करते है, गज के लिये जो सिंह है और व्याघ्र पर जो आरूढ है. ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
श्रितजनप्रियं चिन्तितप्रदम्
श्रुतिविभूषणं साधुजीवनम् ।
श्रुतिमनोहरं गीतलालसम्
हरिहरात्मजं देवमाश्रये ॥ ८ ॥
शरणागत भक्तजनों के लिये जो दयार्द्र है, मनोकामना पूरी करने वाले हैं, जो वेदालंकारीत हैं, सज्जनों के प्राण हैं, जिस के दिव्यत्व की श्रुतियों ने स्तुति की है और जो दैवी संगीत श्रवण से सुख पाता है, ऐसे हरी हरा के आत्मज मै तेरे शरण में आया हूं.
॥ इति श्री हरिहरात्मजाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Hariharasanam yesudas origanal
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