प्रासंगिक - डॉ. नारळीकर - खगोल विज्ञान विज्ञान साहित्यिक
डॉ. नारळीकर - खगोल विज्ञान विज्ञान साहित्यिक
व्याख्यान के दिन, समय से पहले ही कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना हुआ। टाई, सूट और बूट जैसे औपचारिक पोशाख में राज्य विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी, विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर और बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।आखिर वो घडी आ गई। संस्था के मुख्य द्वार के सामने डॉ. नारळीकर की कार जैसे ही आ गई, चारों ओर से घिर गई। ऐसे में उन्हें ठीक से देख न पाने की संभावना सता रही थी। लेकीन सौभाग्य से निराश नही होना पडा कारण सभी की अपेक्षाओं से विपरीत प्रमुख वक्ता होने के बावजुद, सूट, टाई जैसे औपचारिक पोशाख में नही बल्की पायजामे जैसी पतलून, पतली सूती शर्ट और चप्पल जैसे साधारण पोशाख में डॉक्टर नारळीकर अवतीर्ण हुए। उस भीड मे भी सादगी भरा उनका व्यक्तित्व साफ नजर आया।
सारी औपचारिकताएँ पूरी होने के पश्चात जब संबोधन सुरू किया तो पहले वाक्य मे ही उन्होंने अपने स्थायी स्वभाव के अनुरूप शिक्षा, विज्ञान और आचरण के बीच की विसंगति पर बहुत ही सौम्यता से लेकिन मार्मिक टिप्पणी की।
"आप, भौतिकशास्त्र के सभी प्राध्यापक, छात्र, होते हुए भी, नागपुर की चिलचिलाती गर्मी में, वातावरण पूरक परिधान न करते हुए पाश्चिमात्य परिधान मे कैसे उठ बैठ सकते हो?" मुझे याद है कि सभागार
में बैठे सभी गणमान्य व्यक्तियों के चेहरे से ये पता चल रहा था की डॉक्टर साहेब की यह बात उन्हे गौर करने लायक लगी थी। इस घटना से उस उम्र मे ही डॉक्टर नारळीकर जी के प्रति सम्मान वृद्धिंगत हो गया था। आगे सरकारी सेवा हेतू प्रथम आकाशवाणी भोपाल, मुंबई मे सेवा देते हुए सन 1992 में मेरा आकाशवाणी पुणे मे स्थानांतरण हुआ। सभी आकाशवाणी केंद्रों मे 'ड्यूटी रूम' गाँव की किसी चौपाल की तरह होता है। या कह सकते हैं की हम उस जगाह का उपयोग उस तरह करते थे। इस विभाग में कई दिन काम करने के बाद, कुछ दिनों के लिये मराठी भाषण विभाग में मेरा अंतर्गत तबादला हो गया। इस से कामकाज मे कई और नए अवसर प्राप्त हुए।
जिन डॉक्टर नारळीकर को बस एक बार, दूर से ही सही देखने हेतू मैने पंद्रह सोलह साल पहले, नागपुर में जाद्दोजहद की थी उन्हे करीब से मिलने और बातचीत करने का सौभाग्य मुझे आकाशवाणी पुणे मे प्राप्त हुआ। जहाँ तक मुझे याद है, उस समय आकाशवाणी पुणे में मान्यवरों से बातचीत का एक कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा था। इस कार्यक्रम के माध्यम से विविध विषयों पर विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्तियों से बात कर उनकी जीवनी के प्रेरणादायी बातों से श्रोताओं को अवगत कराया जाता था। एक भाग डॉक्टर जयंत विष्णू नारळीकर पर नियोजित किया था। सारा नियोजन मेरे वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी अरविंद गोविलकर ने कर रखा था। रिकॉर्डिंग के लिए डॉक्टर नारळीकर का रेडियो स्टेशन मे आना हुआ। उनके साथ चायपान तथा अनौपचारिक बातचीत में शामिल होने का अवसर भी मुझे मिला। निर्मिती सहायक (Production Assistant) के रूप में ध्वनिमुद्रण(Recording) का जिम्मा मुझ पर था। रिकॉर्डिंग लगभग एक घंटे तक चली थी। इस दौरान नगर निगम के स्कूल में हिन्दी माध्यम से हुई उनकी की शिक्षा, सब्जी मंडी में हिसाब-किताब सही से न कर पाना, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स(IUCAA) की स्थापना में उनका योगदान, इन सब के बारें मे उनसे मैं सीधे सुन रहा था। इस दौरान मेरे जहन में उनकी बेबाक सादगी फिर से उभर आई।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक से बात करते समय एक और बात जिसकी ओंर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ वह थी, डॉक्टर नारळीकर की सरल और सुंदर मराठी भाषा। इस पूरे ध्वनिमुद्रण के दौरान उन्होंने गलती से भी अंग्रेजी का एक भी शब्द नहीं बोला। पारिभाषिक शब्दों का अपवाद भी किये बिना।
डॉ नारळीकर को विज्ञान शाखा की विरासत अपने गणितज्ञ पिता विष्णु वासुदेव, और कला शाखा की विरासत संस्कृत विदुषी माता सुमति विष्णु से मिली। नभांगण के साथ-साथ साहित्य के प्रांगण में उनके आसानी से विचरण का राज शायद यही था।
'अनुरूप गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत' के लिए डॉ नारळीकर पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। उन्होंने खगोल विज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी पहली मराठी किताब 'यक्षांची देणगी' ने महाराष्ट्र राज्य सरकार का पुरस्कार जीता। छब्बीस वर्ष की कम उम्र में, पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त किया। 2004 में, उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 2010 में, उन्हें महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार प्रदान किया गया। यूनेस्को कलिंग पुरस्कार उन्हें 1996 में मिला। 2014 में, जयंत नारळीकर की आत्मकथा ‘चार नगरांतील माझे विश्व’(My World in four Metropolis) ने साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Academy) जीता। उन्हें महाराष्ट्र के नासिक मे संपन्न 94वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। कोरोना महामारी के चलते इसे नियोजित समय के बाद 3 दिसंबर,2021(Friday)को आयोजित किया गया l
जयंत नारळीकर अत्यंत मृदु भाषी और आम तौर पर मृदु स्वभाव जाने जाते हैं। लेकिन जब गलत को गलत कहने की बात हो तो वे उसे दृढता से, सही समय, सही स्थान, पर रखने मे हीचकीचाते नही है। एक इंटरव्यू के दौरान डॉ नारळीकर ने बताया कि उनके गुरू फ्रेड हॉयल और स्टीफन हॉकिंग के बीच कुछ विवाद हो गया था। बीबीसी द्वारा निर्मित एक फिल्म में इसका जिक्र किया गया है लेकिन उस फिल्म में, डॉक्टर नारळीकर के अनुसार, कुछ गलत जानकारी है, और फिल्म का झुकाव पूरी तरह से स्टीफन हॉकिंग की तरफ हैं। फिल्म बनाते समय बीबीसी द्वारा उनसे संपर्क करने पर उन्होंने इस बात का जिक्र कैसे हो, यह बताया भी था, लेकिन हो सकता है कि हॉकिंग के प्रसिद्धी वलय, या फिर किसी और वजह से फिल्म को वैसे ही प्रदर्शित किया गया। इंटरव्ह्यू मे वे यह भी कहते हैं कि यदी अब भी बीबीसी कुछ बोध लेकर परिवर्तन करना चाहती हैं, तो वे अधिक जानकारी देने को तैयार हैं। खास बात यह है कि बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में ही उन्होंने ये सब स्पष्टता से बताने का साहस दिखाया। बीबीसी ने भी इस वक्तव्य को बिना हटाये इंटरव्यू प्रसारित किया।
एक अन्य साक्षात्कार मे वे कहते हैं कि शनि और मंगल ग्रह के संबंध में हमने जो ग्रह बनाए हैं, वे ग्रीक संस्कृति से हमारे पास आए हैं। वेदों में फलज्योतिष का उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा है कि ये चीजें बहुत बाद में आईं और यह एक आयातित अंधविश्वास है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कीर्ती स्थापित करने के बाद, डॉक्टर नारळीकर भारत में खगोल अनुसंधान और उसे लोकाभिमुख करने के उद्देश से 1972 में भारत लौट आए। प्रारंभ में, वह मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में खगोल विज्ञान विभाग के प्रमुख थे। बाद में 1988 में, वह पुणे में आयुका संस्था के निदेशक बने। भारत अर्थात मातृभूमि को कर्मभूमि बनाने के संबंध में उनकी भावना स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जैसे ही जाज्वल्य प्रतीत होती हैं। इस निर्णय से डॉक्टर नारळीकर जैसे वैज्ञानिक की महानता श्वेत हिमगिरी की ऊंचाई से स्पर्धा करती लगती हैं।
नितीन सप्रे
8851540881
नितिन हमें तुम्हारे ऊपर गर्व है कि आपने जो भी आकाशवाणी की सेवा की है उसके पहले से ही आपने सभी बड़ी-बड़ी हस्तियों से उनके प्रसिद्ध या अप्रसिद्ध होने से पहले मुलाकात करने की दृढ़ता दिखाई थी। इसलिए आपको भगवान ने अच्छी जगह पर पोस्टिंग देकर आपकी जिज्ञासा को और परिपक्व बनाया। मैं यह चाहता हूं कि आप 100 साल तक के कम से कम जिए और यही आपकी खासियत दिन दुगनी और रात चौगुनी बढ़ती रहे। हरि ओम
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