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स्मृतिबनातून - ठहरिए होश में आऊं तो चले जाइएगा……….

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ठहरिए होश में आऊं तो चले जाइएगा………. हिंदी फिल्म संगीत की बात करें तो बीसवीं सदी के पचास, साठ ये दशक स्वर्णिम कहलाये जा सकते हैं। रोमांस और भावनाओं से ओत-प्रोत संगीत के लिये मशहूर मोहम्मद जहूर ख़य्याम हाशमी(Khayyam) यह इस कालखंड के अहम संगीत निर्देशक थे। पांच दशक से अधिक रसपूर्ण, भावविभोर कर्णप्रिय संगीत से खय्याम सहाब ने अमिट छाप छोड़ी। किसी झील मे हवा के झोकों से उठती सौम्य लहरों जैसा सुकून उनके संगीत की हृदयस्थली थी। कोई भी कविता की ख़ुशबू बरकरार रखते हुए उसे गीत मे ढालने का अनोखा हुनर, ख़य्याम की विशेषता थी। ख़य्याम को बचपन से ही शिक्षा में कोई विशेष रुचि नहीं थी लेकिन वो संगीत की ओर पूरी तरह आकर्षित थे। बचपन में ही ख़य्याम घर से भाग दिल्ली में अपने चाचा के पास चले गये थे। चाचा ने उन्हें स्कूल में भर्ती कराया था, लेकिन फिल्मों के प्रति उनकी प्रीत, उनके आकर्षण को देखते हुए, उन्होंने उसे संगीत सीखने की अनुमति दी। पंडित अमरनाथ ख़य्याम के गुरु थे। वह अभिनय के अवसरों की तलाश में लाहौर(Lahore) गए। वहां उन्होंने पंजाबी संगीत निर्देशक बाबा चिश्ती(Baba Chisti) के साथ संगीत साधना शुरू की। एक ...

स्मृतीबानातून - खय्याम : ठेहरिये होश में आऊ तो चले जाईएगा……….

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  खय्याम : ठेहरिये होश में आऊ तो चले जाईएगा………. हिंदी चित्रपट संगीत जगता साठी पन्नास आणि साठ ची दशकं सुवर्णमयी होती. रोमांस आणि भावनांनी ओतप्रोत संगीत आणि एखाद्या रम्य सरोवरात वाऱ्याच्या मंद झुळकां मुळे  उठणाऱ्या सौम्य लहरीं सारख्या वाद्यमेळ्या सह गीताचे सौंदर्य वाढविण्यासाठी सुपरिचित मोहंमद झहूर खय्याम हाश्मी म्हणजेच  खय्याम यांनी पांच दशकां हुन अधिक काळ संगीत दिग्दर्शनाच्या क्षेत्रात आपली अमीट छाप उमटवली. कवितेला सहज गातं करण्याची अनोखी कला त्यांना लाभली होती.  लहानपणा  पासूनच खय्याम यांना शिक्षणात विशेष रुची नव्हती मात्र त्यांचा संगीता कडे ओढा होता. दिल्लीत काकां कडे पळून आलेल्या खय्याम यांना काकांनी शाळेत दाखल तर केलं मात्र चित्रपट सृष्टीचं त्याला असलेलं आकर्षण पाहता काकांनी त्याला संगीत शिकण्याची मुभा दिली.  पंडित अमरनाथ हे खय्याम यांचे गुरू. अभिनयाच्या संधीच्या शोधार्थ ते लाहोरला गेले. तिथे त्यांनी पंजाबी संगीत दिग्दर्शक बाबा चिस्ती यांचे कडे संगीत साधना सुरू केली. एके दिवशी चिस्ती  यांनी संगीत दिलेल्या रचनेचा मुखडा खय्याम यांनी गायला तेव्हा चिस्...

स्मृतिबनातून - आसमानों में उड़ने की आशा

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आसमानों में उड़ने की आशा रेकॉर्ड ब्रेक एयर इंडिया(Air India) फ्लाइट AI 176.. सैन फ्रांसिस्को से बंगळुरू...16000 किलोमीटर की दूरी...दुनिया का सबसे लंबा हवाई मार्ग..सत्रह से अधिक घंटे अविरत उड़ान... उत्तरी ध्रुव(North pole) के ऊपर चौंतीस हजार फीट ऊंचाई से.. चार सदस्यीय चालक दल... जिसमें विशेष था चारों भारत की बेटियों का होना और नेतृत्व कर रही थी हवाई शलाका जोया अग्रवाल(Joya Agrawal) । स्वप्न और स्वप्नपूर्ती आठ साल की एक बालिका बचपन  से ही अपने घर के छत से तारों को निहरती रहती और आसमां  में हवाई जहाज को देखकर, मन ही मन खुद हवाई जहाज का उड़ान भरने का सपना अपनी चमकीली आंखों में संजोती थी। तब यह सपना ही था लेकिन वह सोते हुए नहीं जागते हुए देखा गया था। आज बचपन के उस सपने को यथार्थ में बदलकर जोया भारत मां की आंखों का चमचमाता सितारा बन चुकी है । सपना जो की जोया का अपना था, पुरा तो हुआ लेकिन राह आसान नहीं थी। जोया अपने मां - बाप की इकलौती संतान हैं। बेटी भी और बेटा भी। परिवार परंपरा में आस्था रखने वाला होने से जोया के सपने पल्ले पडना, अब नामुमकिन तो नहीं कह सकते, लेकिन कुछ मुश्किल जरूर...