स्मृतिबनातून - त्रिपुरी स्वरपूर्णिमा

त्रिपुरी स्वरपूर्णिमा 


भारत में संगीत की समृद्ध परंपरा रही है। शास्त्रीय संगीत, उप-शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, भाव संगीत, वाद्य संगीत और लोक संगीत इस गौरवशाली परंपरा की धरोहर है। शास्त्रीय संगीत में शास्त्र, उप-शास्त्रीय संगीत में लालित्य, भाव संगीत में शब्दार्थ, वाद्य संगीत में ध्वनि तो लोक संगीत में भावना की अहमियत होती हैं l लोक संगीत प्रकृति का संगीत है जिसका जन्मस्थान हृदय है। प्रकृति से निकट होने से ईसमे मिट्टी की खुशबू भी है। सुमनों की  पंखुडीयों पर ओस के मोतीया बूंद दिखने जैसे आनंद की अनुभूती लोकसंगीत पर आधारित रचना सुनकर प्राप्त होती है। लोकसंगीत की इस मर्मस्थली से परिचित संगीत निर्देशकों मे त्रिपुरा शाही परिवार से तालुकात रखनेवाले, राजस रचनाओं के रचयिता सचिन देव बर्मन का नाम निस्संदेह अग्रस्थान पर आता हैं। सचिनदा की संगीत से दिल्लगी और परिपूर्णता के प्रति उनका आग्रह इन बातों को समझने हेतू 'जलते है जिस के लिये' इस गीत का किस्सा जानना जरूरी होगा।

बताया जाता हैं की अनेक रिर्हसल्स के बाद भी, तलत महमूद अंत तक वो टेक न दे सकें जो सचिन दा के पसंद पर खरा उतर सके। हम सभी जानतेही हैं की ये गीत तलत के सर्वश्रेष्ठ, सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक हैं मगर संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन ने इसे समझौते के रूप में ही स्वीकारा था। सृजन मे परिपूर्णता का असाध्य ध्यास, निर्मिती का उच्च मापदंड सचिन दा रखते थेl चुनिंदा दर्जेदार गीतों का नजराना संगीत प्रेमियों बहाल कर सकने का शायद यही राज है l सचिन दा की एक और खुबी थी l उन्होंने एक ही फिल्म मे नायक/नायिका के लिये एक से अधिक आवाज से प्लेबॅक कराने का सफल प्रयोग किया था l सुपर स्टार देवानंद के लिये एक ही फिल्म मे उन्होंने किशोर दा, मोहम्मद रफी ही नही, हेमंत दा, तलत मियां से भी गीत गवाएं हैं l 



बॉलिवूड के बेताज गायक किशोर कुमार के लिये संगीत निर्देशक सचिन दा मानो जन्मदाता जैसे थे l सचिन दा के  संगीत निर्देशन मे किशोर कुमार ने गाएं लगभग सभी गीत आज भी लोकप्रियता के शिखर पर अपना परचम लहराते दिखाई देते है l किशोर कुमार को सचिन दा ने पुत्रवत प्यार दिया l किशोर भी उनका बडा आदर करते थे, उन्हे गुरू मानते थे l सचिन दा के आखरी दिनों मे फिल्म 'मिली' के लिये, 'बडी सूनी सुनी हैं जिंदगी जिंदगी' इस गीत के रिहर्सल पर सचिन दा कुछ भावूक हुए थे l रिहर्सल के बाद किशोर कुमार निकले तभी कुछ समय बाद सचिन दा को दिल का दौरा पडा l अस्पताल मे दाखिल होना निहायत जरूरी था, पर सचिन दा ने साफ इंकार कर दिया l  कारण इस गीत का दुसरे दिन रेकॉर्डिंग होना था l एक आखरी प्रयास के रूप में आर डी बर्मन ने किशोर कुमार से मदद की दुहार लगाई l किशोर कुमार ने अपना गला खराब होने का बहाना कर, जान बुझ से सचिन दा से उस तरह की आवाज मे बातचीत करते हुए कहा की, वो कल रेकॉर्डिंग नही कर सकते l अतः आप भर्ती हो कर आपना इलाज करावाऐं और जब तबियत ठीक होगी तभी रेकॉर्डिंग करेंगे l मात्र ईश्वर की इच्छा कुछ और थीl सचिन दा इस गीत की रिकॉर्डिंग मे शामिल नही हो सके l आखिर उन्होंने किशोर कुमार को ही गाना रेकॉर्ड करने को कहा, ये कहते हुए की मैं सामने हुं ऐसे समझकर तुम गाना l तुम्हे मेरी मौजूदगी मेहसूस होगी l  गाना अच्छा होना चाहिए रे...l किशोर कुमार ने अपना सर्वस्व दांव पे लगाकर इस गीत को रिकार्ड कि और फिर पंचम दा ने हॉस्पिटल मे जाकर बर्मन साहाब को गीत सुनाया l रिकॉर्डिंग सुनने के पश्यात उन्होंने किशोर कुमार की शाबासी करते हुए कहा की किशोर ने गाना बहोत अच्छा निभाया है, इतना अच्छा की, मेरी मौजुदगी में भी शायद इतना अच्छा नही होता l खुद ही ने तराशे एक बेहतरीन गायक किशोर के इस गीत को सुनते सुनते अस्पताल मे ही भूलोक के इस गंधर्व ने, गंधर्वलोक की यात्रा के लिये प्रयाण किया l गीतकार योगेश के इस गीत के शब्द भी बडे सटिक हैं…

'बड़ी सूनी सूनी है ज़िंदगी ये ज़िंदगी 

मैं खुद से हूँ यहाँ अजनबी अजनबी

बड़ी...

कभी एक पल भी, कहीं ये उदासी

दिल मेरा भूले

कभी मुस्कुराकर दबे पाँव आकर

दुख मुझे छूले

न कर मुझसे ग़म मेरे, दिल्लगी ये दिल्लगी

बड़ी... सुनी सुनी हैं जिंदगी ये जिंदगी'….


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प्रतिभावान संगीतकार के रूप में सचिनदा जितने सुपरिचित हैं, उतनी ही अनोखें अंदाज मे पेश उनकी रचनाएं भी l  सचिनदा ने चुनिंदा गीत गाए और वो सभी अजरामर हुए l इसका कारण था उनकी धीरगंभीर पारलौकिक आवाज, संगीत का रियाझ और लोकसंगीत का साज l इसी त्रिभुवन मात्रा से सचिनदा की संगीत यात्रा बहारदार हुई l खुली तथा पहाडी आवाज के वो धनी थे l हिमालय को यदी मानवी आवाज होता, तो वो सचिनदा की आवाज जैसा होता ऐसी कल्पना हमेशा मन में आती है l उनके गाये फिल्मी गीतों मे लोकसंगीत की महक हैं l विशेषत: बंगाल के बाऊल संगीत का प्रभाव स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है l पार्श्वगायक सचिन दा की और एक  खुबी हैं l उन्होंने अपनी आवाज कभी कोई नायक को नही दीं l उनके गाए और लगभग सभी मशहूर गीत फिल्म की कहानी ही स्वरमयी अंदाज मे बयां करते है l उदाहरण के रूप में ' आराधना ' फिल्म का 'सफल होगी तेरी आराधना', 'सुजाता' का 'सुन मेरे बंधू रे, सुन मेरे मितवा' या गाईड का 'वहां कौन है तेरा, मुसाफिर जायेगा कहां' ये सभी गीत तुरंत याद आते है l इन गीतोंने कथा रुप ही धारण किया हैं l आठ दिन (1946), सुजाता (1959), बंदिनी (1965), गाईड (1965), प्रेम पुजारी (1969), आराधना (1969), तलाश (1969), अमर प्रेम (1971), जिंदगी जिंदगी (1972) इन फिल्मों के लिये गाए उनके गीत कालजयी हैं l  वाद्यवृंद का सही मेल, प्रसंगानुरूप पार्श्वगायक/गायिका का चयन और उन्होंने खुद के गाए गीतों को लोकसंगीत की किनार इन खुबियों के कारण सभी गीत लोगो द्वारा पसंद किए गए l संगीत के जानकारो को तो ये गीत विशेष आकर्षित करते है l

कुछ रचनाएं पहिली बार सुनते समय ही कान से सीधे मन में उतरती हैं और हमेशा के लिये वही बस जाती है l ऐसा भाग्य कुछ विरले कलाकृतींयों के ही नसीब होता है l लेकीन सचिन दा का संगीत तथा उनके गाए गीत अपवाद हैं l उन्हे विशेष सौभाग्यशाली कहना  होगा l क्युं की जो अपवाद से घटता हैं वो उनकी अधिकतर गीतों के साथ घटता नजर आता हैं l 


फिल्म आराधना का गीत 'सफल होगी तेरी आराधना, काहे को रोये' यह उनकी रचना से, अन्य अव्वल रचनाएं जरूर ईर्ष्या करती होगी l यह गीत को सुनो देखों तो स्पष्टता से प्रतीत होता है की शब्द, सूर, धून और अभिनय इनके बिच श्रेष्ठता के लिये मानो स्पर्धा हो रही हो l वंदना के (आराधना फिल्म की नायिका) जीवन संघर्ष के चित्रण  हेतू गीतकार आनंद बक्षी सटीक शब्दों की योजना करते हैं l 'बनेगी आशा इक दिन तेरी ये निराशा, काहे को रोये, चाहे जो होये सफ़ल होगी तेरी आराधना' इन लब्जों को संगीत मे ढालते वक्त, निराशा की निशा ढलकर उत्कर्ष का उष:काल होगा यह आशा जगाने वाली नितांत अर्थवाही धून 'संगीतकार एस.डी.बर्मन' ने की हैं और 'गायक सचिन दा' ने लब्ज, सुर के साथ संपूर्ण न्याय करते हुए अपनी धीरगंभीर खुली आवाज मे बाऊल संगीत की याद दिलाते हुए, केवल गले से ही नहीं बल्की हृदय से गाते हुए सभी के दिल को छु लिया है l


क्लिक करें - सफल होगी तेरी आराधना


बनेगी आशा इक दिन तेरी ये निराशा


काहे को रोये, चाहे जो होये


सफ़ल होगी तेरी आराधना


काहे को रोये   ...


आँखे तेरी काहे नादान


छलक गयी गागर समान


समा जाये इस में तूफ़ान


जिया तेरा सागर समान


जाने क्यों तूने यूँ


असुवन से नैन भिगोये


काहे को रोये   ...


कहीं पे है सुख की छाया


कहीं पे है दुखों का धूप


बुरा भला जैसा भी है


यही तो है बगिया का रूप


फूलों से, कांटों से 


माली ने हार पिरोये


काहे को रोये   ...


दिया टूटे तो है माटी


जले तो ये ज्योति बने


आँसू बहे तो है पानी


रुके तो ये मोती बने


ये मोती आँखों की


पूँजी है ये न खोये


काहे को रोये   ..


वंदना का जीवन संघर्ष किसी के भी दिल को पानी पानी कर देता है l उसकी इतनी सशक्त, वत्सल सांत्वना और 'सफल होगी तेरी आराधना' जैसा साकार होता दुर्दम्य आशिर्वचन, को बेमिसाल ही कहा जा सकता है l गीतकार, संगीतकार 

और गायक द्वारा प्रकट शब्द, सुर और भावना को शर्मिला टागोर ने अपने अभिनय की बेमिसाल जोड देकर जिवीत किया है l वंदना की विदीर्ण मनोवस्था देखकर  कोई भी संवेदनशील व्यक्ती 'आँसू बहे तो है ये पानी रुके तो ये मोती बने' यह बात स्वीकारता भी है, तब भी गीत सुनते, देखते समय 'ये मोती आँखों की पूँजी है ये ना खोये' इस पर अमल करना ऊस के लिये असंभव हो जाता हैं l आखों से आंसु छलक ही हैं l किसी ने सही कहा हैं की कविता खास कर अच्छी कविता बडी ही भयकारी हो सकती हैं, क्यूंकी जो घटना जीवन मे घटी ही नही, उसका भी अनुभव कराने की ताकद उसमे होती हैं l यह गीत उसी श्रेणी मे आता हैं l संगीतकार, गायक सचिन देव बर्मन की संगीत प्रतिभा की खुबियों पर नजर डाले तो स्पष्ट होता है की भौगोलिक प्रदेश का राजपद त्यागनेवाला यह नरेश रसिकजनों को स्वराभिषेक कराते कराते अलौकिक सुरलोक का सुरेश बन गया l


सचिनदा की सूरमयी स्मृती को शत शत नमन l



नितीन सप्रे


nitinnsapre@ gmail.com


8851540881



टिप्पण्या

  1. बहुत ही सुन्दर।आप हिंदी में भी बहुत अच्छा लिखते है, सर।
    हार्दिक शुभकामनाएं।

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