स्मृतीबनातून - "काश ना होती अपनी जुदाई मौत ही आ जाती"

 "काश ना होती अपनी जुदाई 

मौत ही आ जाती"



सुख की अभिलाषा नि:संदेह रुपसे मानवी जीवन की प्रेरणा हैं l वहीं दुख, दर्द मानवी जीवन का वास्तव हैं l सुख की चाह मे सफर पर निकला राहगीर कहीं ना कहीं, कभी ना कभी, दुःख, दर्द से रुबरू हो ही जाता हैं l और बात अगर दिल्लगी की हो तो फिर दर्द की गहराई की तुलना सागर से ही हो सकती हैं l रेडिओ मे विविध भारती पर छायागीत, बेला के फूल सूनना पहले मेरे काम का हिस्सा था अब आराम का काम है l दिल्लगी का दर्द बयां करने वाली एक निहायत बेहतरीन गजल, इन दिनों, लंबे अंतराल के बाद फिर सुनने मे आयी I एस एच बिहारी जी की लिखी इस गजल के अल्फाझ किसी संगीन की तरह दिल को चुभनेवाले हैं l ओ पी नय्यर जैसे संगीत निर्देशक जब गीत, गजल, नजम को तराशता हैं और सुरों की मलिका आशा भोसले के गले से वो प्रवाहित होती हैं तो, कहावत हैं इसलिये, वरना केवल चार, नही तो, उसे चारसो चांद लग जाते हैं l इस गजल का एक एक अल्फाज विरहातिरेक की अनुभूती कराता हैं l




चैन से हमको कभी

आपने जीने ना दिया

ज़हर भी चाहा अगर

पीना तो पिने ना दिया

चैन से हमको कभी


नायिका वियोग भावना से दग्ध हैं, कुछ तो छल का भी अहसास हैं ऐसे मे कहती हैं की आपने (प्यार ने) हमे चैन से जीने तो दिया ही नहीं ऐसे मे जब मृत्यू को आगोश मे लेना चाहा तो आपने जहर तक नशिब नही होने दिया l


चाँद के रथ में

रात की दुल्हन जब जब आएगी

याद हमारी आपके

दिल को तरसा जाएगी

प्यार के जलते जखमों से जो

दिल में उजाला हैं

अब तो बिछड के और भी ज्यादा

बढनेवाला हैं

आपने जो है दिया

वो तो किसीने ना दिया

ज़हर भी चाहा अगर

पीना तो पिने ना दिया

चैन से हमको कभी


अपने प्यार की दुहाई देते हुए वो कहती हैं की दुल्हनसी सजी चांदनी रात जब जब आयेगी तब तब हमारी याद आपके दिल पर दस्तक देगी l हमारे प्यार के जख्म जलकर जो उजाला दिल में हो रहा है वो अब बिछडने के बाद तो और भी बढेगा l आपने हमें जो कुछ दिया हैं वो सबसे परे हैं l


आपका गम जो इस दिल में

दिन रात अगर होगा

सोचके ये दम घुटता है

फिर कैसे गुज़र होगा

काश ना होती अपनी

जुदाई मौत ही आ जाती

कोई बहाने चैन

हमारी रूह तो पा जाती

इक पल हँसना कभी

दिल की लगी ने ना दिया

ज़हर भी चाहा अगर

पीना तो पिने ना दिया

चैन से हमको कभी.


वो इस बात से हैरान हैं की जुदाई का गम अगर इस तरह  दिनरात दिल में बसा रहा तो फिर क्या जीना, क्या मरना? काश हम जिते जी जुदा ना होते, मौत ही हमें जुदा करती, तो कम से कम हमारी रुह को तो चैन मिलता l हमारी इस दिल्लगी ने और फिर इस जुदाई ने तो खुशी के लम्हे जिने ही नाही दिये l



ओ पी सहाब ने इस गजल को खमाज के सुरों मे पिरोया, एक ऐसा राग जो मिलन के साथ साथ विरह, छल की भावना की अभिव्यक्ती के लिये भी असरदार हैं l ओ पी के लिये तो कहा जा सकता है की वो शब्द, शब्दार्थ को  ही नही, भावनाओं को स्वररचना मे ढालते थे l जब जब ऐसी बेहतरीन तराशी गई रचना को आशा का सुर मिलता हैं तो उसका बेजोड होना अनिवार्य होता हैं l सोने पे सुहागा यही है l


कोई आश्चर्य की बात नहीं की 'प्राण जाये पर वचन ना जाये' इस फिल्म के लिये लिखवाई गई इस गजल फिल्म रिलीज होने से पहेले ही लोगों के दिल में जा बसी l यह गजल शब्द, संगीत तथा गायन की जैसे परिसीमा हैं l इस गजल के लिये आशाजी को सन 1975  का सर्वोत्कृष्ट महिला गायिका का फिल्म फेअर पुरस्कार मिला l जो की उनका आपना छ्ठा पुरस्कार था l पर हाय रे किस्मत! लोकप्रिय, सफलता के परचम लेहरानेवाले इस रचना के भाग्य मे रचयिता ने कुछ विपरीत लिखा था l ओ पी और आशा के बीच 1963 से 1972 तक रही व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत नजदिकियों मे दरार पड गई l बताया जाता हैं की रेखा पर ये गीत चित्रित होने के बावजुद उसे फिल्म मे शामील नही किया गया l आशा तो पुरस्कार समारोह मे भी नहीं पहुंची l ओ पी और एस एच बिहारी  समारोह मे गये l ओ पी ने आशा के अनुपस्थिती मे पुरस्कार स्वीकारा लेकीन घर लौटते वक्त

कार से ही समुंदर मे फेंक दिया l लोकप्रियता का स्वर्ग देखने वाले इस गीत ने इन्सानी रिश्ते, संबंधों के पाताल का भी अनुभव किया l साठ की दशक मे दर्जनों लोकप्रिय गीत देनेवाली इस जोडी का यह आखरीं गीत साबित हुआ l अपने गजल के अल्फाझ ओपी और आशा पर इतने यथार्थ होंगे इस बात की एस एच बिहारी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी l


सुनने हेतू क्लिक करें -चैन से हमको कभी


नितीन सप्रे

nitinnsapre@gmail.com

8851540881




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