प्रासंगिक - ' राजा ' शायर
' राजा ' शायर
‘तेरे बिन सावन कैसा बीता’ और ‘मैं देखू जिस ओर सखी रे’ यह ‘जब याद किसी की आती है’ तथा ‘अनिता’ फिल्म के मशहूर गीत आज भी सभी के स्मरण मे ताजा है। लेकीन रसिक मान्यता का अनुभव गीतकार नही कर सका। क्यूँकी यह दोनो फिल्म्स प्रदर्शित होने से पूर्व ही गीतकार राजा मेहदी अली खान, 29 जुलै,1966 को परलोक सिधार गये थे। और यह दोनो फिल्म्स 1967 मे प्रदर्शित हुई थी। एक से बढ कर एक बेहतरीन रोमँटिक, अर्थपूर्ण, आशय से भरपूर तथा कुछ गुह्य गीतों का रचयीता, अपने अल्प जीवनकाल मे बॉलीवूड को बेमिसाल तोहफे दे गया।
झेलम (पाकिस्तान) मे जन्मे राजा शायरी के दिवाने थे। इसी दिवानगी के चलते अपनी सारी जमिन जायदाद छोडकर, एक लेखक के रूप मे आकाशवाणी दिल्ली मे काम शुरू किया। वहां उनका परिचय उर्दु के प्रसिद्ध लेखक सादत हसन मंटो से हुआ। वे ही मेहदी को मुंबई ले आए। वहां अशोक कुमार की मदत से शुरू मे उन्हे एक फिल्म मिली, जिसमे मेहदी ने अभिनय भी किया था। 1947 मे विभाजन के समय वह और उनकी पत्नी ताहिरा दोनो ने हिंदुस्तान मे रहना ही पसंद किया। शब्दसंपत्ती की चाहत मे धनसंपत्ती को छोड आए इस राजा को, फिल्मिस्तान के एस. मुखर्जी ने 'दो भाई' फिल्म मे ब्रेक दिया। पदार्पण मे ही सचिनदा के संगीत निर्देशन से सजे ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया’ तथा ‘याद करोगे एक दिन हमको याद करोगे’ इन दो गीतों से राजा मेहदी अली खान नामक यह सपना सदा के लिये साकार हुआ। तब से लेकर आज तक वे सदा याद किये जाते रहे हैं। मदन मोहन की निर्देशन मे तलत मेहमूद ने गाया राजा मेहदी का ‘मदहोश’ फिल्म का गीत सुननेवालों के होश आज भी उडा देता है।उन्होंने सचिन देव बर्मन, एस. मोहिंदर, इकबाल कुरेशी जैसे संगीत निर्देशकों के साथ काम किया। सी. रामचंद्र, ओ.पी.नय्यर के लिये भी गीत रचना की। लेकीन मदन मोहन के लिये लिखे मेहदी के गीतों मे कुछ जादा निखार नजर आती हैं। मदन मोहन की ही तरह राजा मेहदी की योग्यता को सम्मानित करने मे भी कहीं कमी रह गई। अर्थात इस कारण इस राजा आदमी ने अपना हौसला जरा भी नही खोया। नियती से मुकर्रर मात्र 38 सालों मे, राजा लग जा गले के फिर यही, अगर मुझ से मुहब्बत हैं, आप की नजरोने समझा प्यार के काबिल मुझे, नयना बरसे रिमझिम, नैनो मे बदरा छाए, जो हमने दास्तान अपनी सुनाई आप क्यों रोये, तेरे बीन सावन कैसे बिता, तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा, आप युंही अगर हमसे मिलते रहे, आखरी गीत मोहब्बत का, आप के पहलू में आकर रो दिये, तुम बिन जीवन कैसे बिता पुछो मेरे दिल से, झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में,... जैसे सर्व कालिन गीतों का नजराना रसिकजनों को भेट कर गया। चार दशक से कम जीवनरेखा नसिब हुए राजा मेहदी ने विगत सात दशकों से अधिक तथा आनेवाले कई पिढीयों के लिये प्रगल्भ गीतविष्कार सृजीत कर दिया।
राजा मेहदी अली खान की गीत शृंखला मे से अत्युच्च समर्पण भावना से ओतप्रोत एक बेहतरीन प्रेम गीत से गहरी मुलाकात हुई आकाशवाणी भोपाल की ड्युटी रूम मे। सन 1987-88 मे एक दिन ड्युटी ऑफिसर के साथ चल रही चर्चा के दौरान विविधभारती पर 'छायागीत' कार्यक्रम मे उद्घोषिका ने 'आपकी परछाइयां' फिल्म से सुनाए एक गाने का मुखडा आकर्षित कर गया।
"अगर मुझ से मुहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर इक आँसू मुझे मेरी क़सम दे दो
अगर मुझ से मुहब्बत है"……………..
राजा मेहदी आली खान के सरल शब्द, मदन मोहनजीं का संगीत, राग दरबारी के सुर और लतादीदी के गले से बडी सहज भाव से बडी नजाकत से निकल रहे 'गम' 'आँसू' 'सनम' यह अल्फाज। मन मोहित हुआ और सोचने लगा की क्या वास्तवता मे ऐसी मांग भी, कोई प्रेमिका कर सकती हैं?
मन मे ये विचार अभी चल ही रहा था, तभी अंतरा सुरू हुआ
"तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूँ तो क़रार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छुपा लूँ तो क़रार आए
वो हर शय जो तुम्हें दुख दे मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझ से मुहब्बत है………...
अब उसकी मांग की तरफ शक की निगाह से देखना, मन को अपराधी भाव से ग्रस्त कर गया। अब तो उसने अपना निर्धार सुस्पष्ट कर दिया। वो तो गम मे शमिल कराने की अनोखी जिद कर रही थी।
"शरीक-ए-ज़िंदगी को क्यूँ शरीक-ए-ग़म नहीं करते
दुखों को बाँट कर क्यूँ इन दुखों को कम नहीं करते
तड़प इस दिल की थोड़ी सी मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझ से मुहब्बत है".....……….
अब उनकी मांग के प्रति जो भी संदेह मन मे था वो पूरी तरह दूर हुआ था। प्रीतभरी अधिकारीक वाणी से वो कहती हैं..
"इन आँखो में न अब मुझको कोई आँसू नजर आए, सदा हसती रहें आंखे सदा ये होठ मुसकाये, मुझे तेरी सभी आहें सभी दर्द-ओ-अलम दे दो अगर मुझ से मुहब्बत है"............................
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कहते हैं न की, 'जो न देखे रवी वो देखे कवी 'प्रेयसी के समर्पणभाव की बडी उत्कट कल्पना मेहदी के लफजों से व्यक्त हुई हैं! राजा मेहेदी अली खान द्वारा कल्पित यह नायिका कल्पना मे भी जब इतना सुकून दे जाती हैं, सुख की अनुभूती कराती हैं, तो उसके प्रत्यक्ष मे अवतरित होने से क्या होगा इसकी कल्पना की जा सकती हैं।
नितीन सप्रे
nitinnsapre@gmail.com
8851540881
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