स्मृतीबनातून - "काश ना होती अपनी जुदाई मौत ही आ जाती"
"काश ना होती अपनी जुदाई मौत ही आ जाती" सुख की अभिलाषा नि:संदेह रुपसे मानवी जीवन की प्रेरणा हैं l वहीं दुख, दर्द मानवी जीवन का वास्तव हैं l सुख की चाह मे सफर पर निकला राहगीर कहीं ना कहीं, कभी ना कभी, दुःख, दर्द से रुबरू हो ही जाता हैं l और बात अगर दिल्लगी की हो तो फिर दर्द की गहराई की तुलना सागर से ही हो सकती हैं l रेडिओ मे विविध भारती पर छायागीत, बेला के फूल सूनना पहले मेरे काम का हिस्सा था अब आराम का काम है l दिल्लगी का दर्द बयां करने वाली एक निहायत बेहतरीन गजल, इन दिनों, लंबे अंतराल के बाद फिर सुनने मे आयी I एस एच बिहारी जी की लिखी इस गजल के अल्फाझ किसी संगीन की तरह दिल को चुभनेवाले हैं l ओ पी नय्यर जैसे संगीत निर्देशक जब गीत, गजल, नजम को तराशता हैं और सुरों की मलिका आशा भोसले के गले से वो प्रवाहित होती हैं तो, कहावत हैं इसलिये, वरना केवल चार, नही तो, उसे चारसो चांद लग जाते हैं l इस गजल का एक एक अल्फाज विरहातिरेक की अनुभूती कराता हैं l चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया ज़हर भी चाहा अगर पीना तो पिने ना दिया चैन से हमको कभी नायिका वियोग भावना से दग्ध हैं, कुछ तो छ...