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जुलै, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

प्रासंगिक - कभी ना जाओ छोडकर

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' कभी ना जाओ छोड कर' प्रतिभा अथवा कुठलीही कला ही अंगीभूत असायला हवी. शिक्षण, प्रशिक्षणातून तिला पैलू पाडता येतील, पण ती निर्माण करणं निव्वळ अशक्यच. हे निसर्गाच वाण असतं. सरसकट सर्वांनाच ते मिळत नसतं. अमृतसर जिल्ह्यातल्या कोटरा सुलतान सिंग गावात 24 डिसेंबर, 1924 रोजी जन्मलेल्या बालकाला मात्र, निसर्गाची ही कृपा भरभरून लाभली. बालपणी याच्या घरा समोर एक फकिर यायचा. 'खेडन(खेलन) के दिन चार नी माए खेडन दे दिन चार' हे गीत तो गात असे. या आणि त्याच्या अन्य काही गाण्यांवर फिदा झालेला छोटा 'फिको' दूर पर्यंत त्याच्या मागे मागे जात असे. पुढे परिवार लाहोरला स्थानांतरित झाल्यावर बारा-तेरा वर्षांचा फिको मोठ्या भावाला केश कर्तनालयात मदत करता करता गाणी गुणगुणत ग्राहकांचं मनोरंजन करीत असे. त्या काळी लोकप्रिय असलेले गायक अभिनेता कुंदनलाल सहगल त्याच्या आदर्श स्थानी होते. योगायोगाने त्यांचे एका कार्यक्रमा निमित्त आकाशवाणी लाहोर इथं येणं झालं. आपल्या मोठ्या भावाच्या पाठीशी लकडा लावून फिको, सहगल यांचं गायन ऐकायला म्हणून गेला पण योगायोग असा की, गायन सादर करून परतला. कारण ऐनवेळी वीज गे...

प्रासंगिक - 'रफ़ी' बस नाम ही काफी

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  'रफ़ी' बस नाम ही काफी प्रतिभा या कला फिर चाहे वो कोई भी हो, जहन मे होना अनिवार्य हैं। शिक्षा, प्रशिक्षण  से उसे तराशा तो जा सकता है, लेकिन निर्माण करना असंभव हैं। ये तो कुदरती देन होती हैं, हर किसी को नसी ब नही होती।  अमृतसर जिले के कोटरा सुलतान सिंग गाँव में 24 दिसंबर,1924 को जन्मे बालक पर यह कुदरती रहमत खूब बरसी। बचपन मे घर के सामने आता एक फकीर 'खेडन(खेलन) के दिन चार नी माए खेडन दे दिन चार' यह गीत अक्सर गाता था । गाने से प्रभावित होकर छोटा 'फिको’ उसके पीछे चल देता था। फिर लाहोर चले जाने के बाद, बारह तेरह साल की उम्र मे, बडे भाई के सलून मे काम करते करते गुनगुनाकर वो ग्राहकों को लुभाने लगा। गायक आभिनेता कुंदनलाल सहगल उसके आदर्श थे। इत्तफाक से किसी कार्यक्रम हेतू सहगल सहाब  का आकाशवाणी लाहोर जाना हुआ। फिको अपने भाई के साथ उन्हे सुनने तो पहुंचे, मगर बिजली चली जाने से सहगल सहाब ने गाने से मना किया। यही फिको का भाग्य खुला। फिको से गाना सूनाने की बडे भाई की गुजारीश आयोजको ने मान ली। श्रोताओं के साथ साथ सहगल सहाब को भी फिको का गाना इतना पसंद आया की, एक दिन बहोत बडे ...

प्रासंगिक - याद आ गया कोई

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  चाँदनी की ओट से मुस्कुरा गया कोई, याद आ गया कोई...  मुकेश चंद माथूर' नाम का भावविभोर कर देनेवाला अनुपम सुरीला सपना, मायानगरी ने बिसवी सदी के चालिस के दशक मे देखा था। अब सपना तो निद्रावस्था मे, बंद आँखो से दिखाई देनेवाला आविष्कार है। लेकीन यकिन किजिये, मुकेश नाम का यह सपना, संगीत की नजाकत से परिचित सभी, आज भी  खुली आखों से तथा तृप्त कानों से पुरी तरह जागृत अवस्था मे ईसे देख रहे हैं, सून रहे हैं, जी रहे हैं।  चंदेरी नगरी मे मुकेश का प्रवेश तो अभिनेता- गायक बनने की अभिलाषा से हुआ था। लेकीन प्रथम प्रयास 'निर्दोष' ही लोगों के दिलों को छुने मे विफल रहा दोष किसका था पता नहीं। नियतीनं एक अभिन्न गायक का तोहफा मुकेश के रूप मे हम धरतीवासिंयों को देना ते किया था । इसी लिये दो तीन और प्रयासों के बाद अक्टिंग को अलविदा कर, मुकेश ने शायद प्लेबॅक सिंगिंग को ही गले लगाया। मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल मुकेश के लिये आदर्शवत थे। सहगल की गायिकी से वो इतने अधिक प्रभावित थे की 'पहिली नजर' फिल्म का मुकेश का पहिला प्लेबॅक गीत 'दिल जलता हैं तो जलने दे', कही सहगल जी का गाया ही तो न...

प्रासंगिक - अमर्त्य मदन 'मन'मोहन

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  अमर्त्य मदन 'मन'मोहन मदन मोहन रायबहाद्दुर चुंनीलाल कोहली, इस भारीभरकम नाम के धारणकर्ता, बॉलीवूड मायानगरी तथा संगीतप्रेमीयों मे मशहूर हैं मदन मोहन  नाम से। अन्योन्य, तरल रचनाओं के रचयिता के रूप में उन्होंने संगीतप्रेमियों पर जैसे संमोहन कर दिया हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा से अलंकृत थे। उनकी कलाकारी के वर्णन हेतु किसी भी एक भाषा के विशेषण पर्याप्त नही हैं। मदन मोहन के संगीत को लता दीदी के सुर मिल जाये, तो स्वरमाधुरी के अदृश्य पंखुड़ियों के सहारे, किसी अज्ञात टापू मे, मुक्त विचरण का आनंद पाने जैसा हैं।  'लग जा गले के फिर वही', 'आप की नज़रों ने समझा', 'बैंय्या ना धरो', 'मेरा साया साथ होगा', 'तुम जो मिल गये हो', हम प्यार मे जलनेवालों को', 'उनकी ये इनायत है कि हम कुछ नही कहते', 'बदली से निकला हैं चांद', 'बैरन नींद न आए', 'तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है', 'मिलो ना तुमसे हम घबरायें' जैसे मोहमयी गीत,'जरुरत है जरुरत है जरुरत है एक श्रीमती की', जैसा हलका फुलका गीत, 'ये माना मेरी जान मुहब...

प्रासंगिक-अमर्त्य मदन 'मन'मोहन

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अमर्त्य मदन 'मन'मोहन संगीतातला कोहली मदन मोहन रायबहाद्दुर चुंनीलाल कोहली अश्या भारदस्त नावाचा धनी म्हणजेच, आपणा सर्वांना सुपरिचित असलेला बॉलीवूडचा अन्योन्य, तरल संगीतकार मदन मोहन. त्यांची निव्वळ संगीतकार अशी ओळख ही खचितंच अपूर्ण ठरेल. त्यांच्या संगीत रचना या केवळ श्रवणानंद देणाऱ्या नसून संमोहनकारी आहेत. संगीतानं संमोहित करण्याची जणू सिद्धीच त्यांना हस्तगत झाली होती. म्हणूनच त्यांना केवळ संगीतकार नाही तर संमोहनकार ही म्हणावं लागेल. बहुआयामी प्रतिभेचा तो स्वामी होता. त्याच्या प्रतिभेचं वर्णन करण्यासाठी एका भाषेतील विशेषणं अपुरी पडतील. मदन मोहन यांच्या रचना आणि लता दीदींचे सूर म्हणजे तर, स्वरमाधवीच्या अज्ञात प्रदेशात अदृष्य पंखांनी मुक्त विचरण करत, अपार स्वरानंदात हरपून जाण्या सारखं आहे. 'लग जा गले के फिर वही', 'आप की नजरों ने समझा', 'बैंय्या ना धरो', 'मेरा साया साथ होगा', 'तुम जो मिल गये हो', 'हम प्यार मे जलनेवालों को', 'उनकी ये इनायत हैं की हम कुछ नही कहते', 'बदली से निकला हैं चांद', 'बैरन निंद न आए', '...