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ऑगस्ट, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

प्रासंगिक - मंगलध्वनी - बिस्मिल्ला

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शहनाई की मंगलधून प्रास्ताविक देश का पहला स्वतंत्रता दिवस हो, या हिंदुस्तान के सार्वभौम गणराज्य बनने का अवसर, स्वतंत्रता का स्वर्ण महोत्सव, या देश के आकाशवाणी केंद्र की रोज़ की पहली सभा का प्रारम्भ, या फिर देश में दूरदर्शन प्रसारण की शुरुआत और न जाने कितने ऐसे अवसर हो, इन सभी से एक व्यक्ति अभिन्न रूप से जुड़ी रही l उस शख्सियत को दुनिया बिस्मिल्ला के नाम से जानती है l वे कहते थे "मुझे बिस्मिल्ला कहते हैं, और कुरान भी शुरू होती हैं बिस्मिल्ला से l हम सब कुछ हैं और नहीं भी l हम सुर के कायल हैं l और दुनिया में किसी की मजाल नहीं की वो सुर को कम कर दे l" उनका असली नाम वैसे तो कमरूद्दिन खाँ था मगर जन्म के बाद दादा ने कहा "बिस्मिल्ला", मतलब शुरूआत, आगाज़, आगे बढ़ो l जो की यथार्थ में बदला l कमरूद्दिन की कलाकारी नित दिन बहरती रही l यहाँ ज़िक्र हो रहा है उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ और उनकी मौसीक़ी का l बिस्मिल्ला से शहनाई नवाझ उस्ताद भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ बनने का सफर शुरु हुआ पांच, छह साल की कमसिन उम्र से, जब मामु अली बख्श के सीने से लिपट के सोते सोते उनके कहने पर,भले ही शब्दों को...

प्रासंगिक - सूर सनईत नादावला

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  सूर सनईत नादावला प्रास्ताविक भारताचा पहिला स्वातंत्र्य दिन असो किंवा देश सार्वभौम गणराज्य होण्याचा ऐतिहासिक प्रसंग, स्वातंत्र्याचा सुवर्ण महोत्सव, किंवा देशभरातल्या आकाशवाणी केंद्रांच्या दैनंदिन पहिल्या सभेचा प्रारंभ, किंवा देशात दूरदर्शन प्रसारणाची नांदी, न जाणे अश्या कित्येक घटनांशी एक व्यक्ती अभिन्न पणे जोडली गेली. ह्या व्यक्तिमत्वाला जग बिस्मिल्ला म्हणून ओळखतं. बिस्मिल्ला म्हणजे सुरुवात, सामोरं जाणे, जे संपूर्ण यथार्थ झालं. ते म्हणायचे "मला बिस्मिल्ला म्हणतात आणि कुराण ही बिस्मिल्ला नी सुरु होतं. आम्हीच सर्वकाही आहोत आणि कुणीच नाही ही. मी सूरांचा भोक्ता आहे आणि या दुनिये मध्ये सूर कमी करण्याची हिम्मत कुणातही नाही." त्यांचं खरं नाव कमरूद्दिन खाँ होतं. मात्र जन्मतःच दादाजींनी बिस्मिल्ला असं संबोधलं. चंद्रकलेगत कमरूद्दिन उर्फ बिस्मिल्ला यांची कला नित्य विकसित होत गेली. त्यांच्या बहरत गेलेल्या कलेचा आणि  कला जीवनाचा हा संक्षिप्त आलेख आहे.  बिस्मिल्ला ते शहनाई नवाझ भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ हा प्रवास सुरू झाला त्यांच्या वयाच्या पाचव्या-सहाव्या वर्षापासून. मामा अली ब...

प्रासंगिक : 'स्वराज' : 'नए भारत का नया दूरदर्शन'

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  'स्वराज' : 'नए भारत का नया दूरदर्शन' पृष्ठभूमि इंग्रजी सत्तेच्या दास्य शृंखला छिन भिन्न करून 15 ऑगस्ट,1947 ला भारतभूच्या क्षितिजा वर दिव्य स्वातंत्र्य रवी तळपला. देश स्वतंत्र होऊन 75 वर्ष झालीत. स्वातंत्र्य प्राप्ती साठी लाखों लोकांनी अमूल्य योगदान दिलं. कित्येकांनी आपल्या प्राणांची आहुती दिली. त्या सर्व स्वातंत्र्य वीरांच आणि विगत 75 वर्षांत देशानं केलेल्या प्रगतीच स्मरण करण्यासाठी  स्वातंत्र्याचा अमृत महोत्सव साजरा केल्या जात आहे. लाखों देशभक्तांच्या असीम त्याग मुळेच आज नभांगणात तिरंगा मोठ्या गौरवानं फडकत आहे. त्या सर्वांना शतश: नमन. लोकसेवा प्रसारक  देशात लोकसेवा प्रसारकाची भूमिका समर्थपणे सांभाळणारी सार्वजनिक प्रसारण सेवा म्हणजे दूरदर्शन. ही वाहिनी देखील 'स्वातंत्र्याचा अमृत महोत्सव' अभियानात सशक्त योगदान देत आहे. 'नए भारत का नया दूरदर्शन', ही संकल्पना मूर्त स्वरूपात साकारण्याच्या ध्येयाने प्रेरित होऊन दूरदर्शन ने ही आपल्या कार्यक्रमात नवं चैतन्य प्रवाहित केलं आहे. 'स्वराज- भारत के स्वतंत्रता संग्राम की समग्र गाथा' हे त्यापैकीच एक पाऊल. हा ...

प्रासंगिक:स्वराज : 'नए भारत का नया दूरदर्शन'

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' स्वराज' : 'नए भारत का नया दूरदर्शन' पृष्ठभूमि   अंग्रेजी हुकूमत की दास्य शृंखला छिन्न भिन्न कर, 15 ऑगस्ट 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। देश को आज़ाद हुए 75 वर्ष हो गये। इस आज़ादी के लिये लाखों लोगों ने अमूल्य योगदान दिया, प्राणों तक की आहुती दी। उनका उचित गौरव तथा 75 सालों में देश की जो भी  उपलब्धियां रही हैं उसका स्मरण करने हेतु देश में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा हैं। आज जब तिरंगा शान से फहराता है, तो उसके खातिर लाखों लोगों ने जो असीम त्याग किया हैं, उसे नमन करना हम सब का कर्तव्य हैं। लोकसेवा प्रसारक   देश मे लोक सेवा प्रसारण की जिम्मेदारी वहन करनेवाली, देश की सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन भी, 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' अभियान मे, अपना सशक्त योगदान दे रहा हैं। 'नए भारत का नया दूरदर्शन', इस संकल्पना को मूर्त रूप मे साकार करने के ध्येय से, दूरदर्शन ने अपने कार्यक्रमों मे नया चैतन्य प्रवाहित किया हैं। 'स्वराज- भारत के स्वतंत्रता संग्राम की समग्र गाथा' एक  ऐसा ही प्रयास हैं। यह एक मेगा ऐतिहासिक डॉक्यू ड्रामा हैं जो पंधरवी सदी से बिसवी सदी के ...

प्रासंगिक - ' राजा ' शायर

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  ' राजा ' शायर ‘ तेरे बिन सावन कैसा बीता’ और ‘ मैं देखू जिस ओर सखी रे’ यह ‘जब याद किसी की आती है’ तथा ‘अनिता’  फिल्म के मशहूर गीत आज भी सभी के स्मरण मे ताजा है। लेकीन रसिक मान्यता का अनुभव गीतकार नही कर सका। क्यूँकी यह दोनो फिल्म्स प्रदर्शित होने से पूर्व ही गीतकार राजा मेहदी अली खान, 29 जुलै,1966 को परलोक सिधार गये थे। और यह दोनो फिल्म्स 1967 मे प्रदर्शित हुई थी। एक से बढ कर एक बेहतरीन रोमँटिक, अर्थपूर्ण, आशय से भरपूर तथा कुछ गुह्य गीतों का रचयीता, अपने अल्प जीवनकाल मे बॉलीवूड को बेमिसाल तोहफे दे गया।  झेलम (पाकिस्तान) मे जन्मे राजा शायरी के दिवाने थे। इसी दिवानगी के चलते अपनी सारी जमिन जायदाद छोडकर, एक लेखक के रूप मे आकाशवाणी दिल्ली मे काम शुरू किया। वहां उनका परिचय उर्दु के प्रसिद्ध लेखक सादत हसन मंटो से हुआ। वे ही मेहदी को मुंबई ले आए। वहां अशोक कुमार की मदत से शुरू मे उन्हे एक फिल्म मिली, जिसमे मेहदी ने अभिनय भी किया था। 1947 मे विभाजन के समय वह और उनकी पत्नी ताहिरा दोनो ने हिंदुस्तान मे रहना ही पसंद किया। शब्दसंपत्ती की चाहत मे धनसंपत्ती को छोड आए इस राजा को, फिल्म...